101+ दलालों का कोई दल नहीं होता शायरी | Dalal par Shayari & Quotes 2025

Dalal par Shayari:- दलालों का कोई दल नहीं होता : समाज का एक ऐसा वर्ग है जो अपनी व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति के लिए काम करता है। इसका मुख्य उद्देश्य केवल लाभ कमाना होता है, चाहे इसके लिए उसे किसी भी पक्ष का समर्थन करना पड़े। दलाल का न तो कोई स्थायी मित्र होता है, न कोई स्थायी शत्रु। उसका दल केवल वहीं होता है, जहां उसे अपने स्वार्थ सिद्ध होते दिखें।

दलाल विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जैसे राजनीति, व्यापार, संपत्ति का लेन-देन और अन्य व्यवसाय। ये लोग अपने कुशल वार्तालाप, चालाकी और प्रभावशाली व्यक्तित्व का उपयोग कर दूसरों को अपने जाल में फंसाते हैं। वे अक्सर दूसरों के मध्य संबंध स्थापित करने या तोड़ने का काम करते हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता हमेशा अपनी कमाई बढ़ाने की होती है।

दलाल का कोई सिद्धांत या आदर्श नहीं होता। वह केवल अवसरवाद का अनुसरण करता है। उसका उद्देश्य समाज या राष्ट्र की भलाई नहीं, बल्कि व्यक्तिगत लाभ होता है। इसलिए, यह कहना उचित होगा कि दलाल का कोई दल नहीं होता। उसे केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है, और इसी कारण वह अक्सर सामाजिक और नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करता है।

दलालों का कोई दल नहीं होता शायरी

दलालों पर शायरी (1)
दलालों पर शायरी (1)

दलालों का कोई दल नहीं होता,
न कोई वचन, न कोई हल होता।
जहाँ बिके सच, वहीं खड़े रहते हैं,
झूठ का बाजार ही उनका महल होता।

वो न सरहद के होते, न जाति के,
सिर्फ मतलब की राह पे चलते हैं।
सिद्धांत, ईमान, सब भूल जाते,
जहाँ धन हो, वहीं जा बसते हैं।

दलालों का ईमान सिर्फ सौदा है,
उनका धर्म बस फायदा है।
बिकता हो इंसान या वतन का ख्वाब,
हर चीज़ उनकी दुकान का माल है।

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पर याद रहे, समय बदलता जरूर है,
सत्य का सूरज फिर उभरता जरूर है।
दलालों की दुनिया जल जाएगी,
ईमान की रौशनी चमकेगी जरूर है।

“दलालों का कोई दल नहीं होता,
इनके लिए हर पल नया मौका होता।
जहाँ दिखे मुनाफा, वही इनके सपने,
निष्ठा और वफादारी इनके बस अपने।”

चलो सच का आइना दिखाते हैं,
जिनके चेहरे झूठ छुपाते हैं।
दलालों की दुनिया में ये हाल है,
वो सौदे में ईमान भी लगाते हैं।

मचों के साथ चल रही उनकी टोली,
लफ्ज़ों से गढ़ी उनकी हर बोली।
नज़रें झुकीं, इरादे घिनौने,
दलाली का खेल खेलें वो अंजाने।

मान बेचकर वो जो गाते हैं,
दलालों की भीड़ में वो छुपाते हैं।
मगर सच्चाई से डरते हैं अंदर,
चमकते चेहरे, मगर दिल पत्थर।

दलालों से सावधान शायरी

दलालों पर शायरी (2)
दलालों पर शायरी (2)

अगर दलाली में खो गया ईमान,
तो क्या बचा, इंसान या हैवान?
सोचो, ये दौर कब तक चलेगा,
सच की रोशनी हर झूठ को जलेगा।

नज़रें झुकीं, बातें मीठी, पर दिल में खोट,
दिलासा देते हैं, पर सच में करते चोट।
लफ्ज़ों में रस, लेकिन नीयत में ज़हर,
दलालों का खेल ही बस है मुनाफे का कहर।

ये जो आज तुम्हारे हैं, कल किसी और के,
पैसे का रिश्ता जोड़ते हैं दिलों के छोर से।
इमान बेचकर बनते हैं ये सौदागर,
पर भीतर से होते हैं ये रिश्तों के भक्षक।

इनसे बचकर रहो, इनके जाल न बुनें,
क्योंकि दलाल कभी किसी के अपने नहीं होते।

दलालों के चेहरों पर नक़ाब रहता है,
हर जुमले में छलावा बेहिसाब रहता है।
चमकती बातों से फरेब छुपाते हैं,
लोगों के भरोसे को बाजार बनाते हैं।

जो हाथ बढ़ाते हैं मदद के लिए,
अक्सर वही बेचते हैं दर्द नए।
सजग रहना ज़रूरी है इनसे,
ये तोड़ देंगे तुम्हें अपने फायदे के किस्से।

सपनों के सौदागर बनकर आते हैं,
सच्चाई की राह से दूर भगाते हैं।
उनकी हर हंसी में छिपा है धोखा,
सावधान रहो वरना कर देंगे तमाशा।

नजरें मासूम, इरादे खतरनाक,
चालें हैं ऐसी, जैसे दांव शातिर जुआरी का।
ऐ दलालों, अब समझ लिया तुम्हारा खेल,
तुम्हारी हर चाल पर अब देंगे मेल।

जो बिकते हैं हर रुतबे पर,
वो क्या समझेंगे इज्जत का मोल।
इन चालबाजों से बचकर रहो,
हर हंसी के पीछे है घात का गोल।

कभी प्यार की बात, कभी ऐतबार का नाम,
इन्हीं दलालों ने तो लूटा हर इंसान।
इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों से दूर रहो,
वरना खो बैठोगे खुद को इन राहों में।

दलाल किसी के नहीं होते शायरी

दलालों पर शायरी (3)
दलालों पर शायरी (3)

गली-गली में मिलते हैं, ये सच्चाई के दुश्मन,
झूठ के रंग से रंगते हैं हर मंजर।
हर चेहरा नहीं होता भरोसे लायक,
इन दलालों की दुनिया है सिर्फ मुनाफे पर आधारित।

रिश्तों का सौदा, वादों का खेल,
हर जगह लगाते हैं झूठ का मेल।
इनसे बचकर ही रास्ता बनाना,
वरना छीन लेंगे ये जीने का ठिकाना।

दलालों के चक्कर में पड़कर मत गिरना,
इनकी बातों पर कभी मत भरोसा करना।
जो दिखता है, वो होता नहीं सही,
इन चालबाजों से हमेशा सावधान रहो भाई।

इनकी दुनिया है फरेब से सजी,
हर रिश्ता इनके लिए एक बोली लगी।
सच-झूठ की पहचान करो,
ऐसे दलालों से हमेशा सतर्क रहो।

हर मुस्कान के पीछे होता है धोखा,
हर वादे में छिपा होता है छल का मौका।
सावधान रहो इन दलालों की चाल से,
इनके हर फरेब में छुपा है सवाल से।

दौलत के भूखे, इंसानियत बेचते,
अपनी ख्वाहिशों को, हर रिश्ता रौंदते।
कभी इधर, कभी उधर पलट जाते हैं,
दलाल किसी के सगे नहीं होते।

हर चेहरे पर नकाब, हर लफ्ज़ में फरेब,
भरोसा जो किया, तो छुपा लेते हैं जेब।
अपना फायदा हो, तो दोस्ती जताते हैं,
मगर वक़्त पर, अपने भी धोखा खाते हैं।

इंसानियत, वफ़ा, ये उनके पास कहाँ,
दिल में बसता है उनके, लालच का जहाँ।
हर रिश्ते को तौलते हैं, पैसे के तराजू में,
दलाल किसी के सगे नहीं होते।

शायरी के इन लफ़्ज़ों में छुपा है दर्द,
भरोसे का गला घोंटते, ये चालाक मर्द।
दिखावे की दुनिया, मगर दिल के अंधे,
दलाल कभी अपने नहीं, ये सच के पाबंदे।

दलाल पर बेस्ट कोट्स इन हिंदी | Dalal par Shayari

दलालों पर शायरी (4)
दलालों पर शायरी (4)

“दलाली का पेशा ऐसा है, जहां मेहनत से ज्यादा चालाकी की कमाई होती है।”

“सच और ईमानदारी को दलाली के बाजार में कभी जगह नहीं मिलती।”

“दलाल वो है, जो किसी और की मेहनत पर अपनी तिजोरी भरता है।”

“जिस समाज में दलाल बढ़ते हैं, वहां ईमानदार लोग घटने लगते हैं।”

“दलाल की मुस्कान के पीछे हमेशा किसी के नुकसान की कहानी छुपी होती है।”

“दलाली का खेल ऐसा है, जहां सब जानते हैं, फिर भी सब चुप रहते हैं।”

“दलाल की जुबान शहद जैसी मीठी और इरादे कांटे जैसे तीखे होते हैं।”

“जब सच बिकने लगे और झूठ की कीमत बढ़ने लगे, तब समझो दलालों का जमाना है।”

“दलाली का काम करने वालों के पास न इमान होता है, न पहचान।”

“दलाल वही, जो दूसरों का भरोसा तोड़कर अपने मतलब का सौदा करता है।”


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